चटोरेपन को चाटें या निचोड़ें ? : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स में 3 अप्रैल 2012 के अंक में उलटबांसी स्‍तंभ में प्रकाशित


चाट सिर्फ चाटी जानी चाहिए । चाट को खाना तो उसके साथ रेप करने जैसा है। जैसे खाने वाली चीज को चाटनाउसके साथ बलात्‍कार माना जाना चाहिए। जबकि आज बलात्‍कार को साबित करना ही सबसे अधिक कठिन कार्य है। इसमें हादसे के शिकार को ही सजा दिए जाने का प्रावधान है। इससे जीभ जोखिम में है, वह जीभ किसी भी मुंह की हो सकती है लेकिन पहचानी मुंह के साथ ही जाती है। मुंह वाला चेहरा दिखाई न दे तो कयास लगाना भी कठिन कि जीभ भीतर है भी या नहीं। अंजाम देने वाला तो सदा सुरक्षित ही रहा है। चाट का आनंद चटकारे लेने में ही है जबकि चाटना जीभ का गुण है और आनंद मन का। चटोरापन तो जीभ का ही माना गया। जबकि इसे गुनाह मानने वालों की कमी नहीं है। मीठी गोली सिर्फ चूसने पर ही आनंद देती हैकड़वी गोली को मीठे लेप के साथ निगला जाता है,उसे चूसना चाहा तो गोली देखकर शर्म आने लगती है। टाफी को दांतों में कुचलकर खाने में स्‍वाद आता है। कई टाफियां बहुत बेशर्म होती हैं और खाने वाले के दांतों में इस कुशलता से यत्र-तत्र-सर्वत्र हो जाती हैं कि दांत निर्वस्‍त्र नहीं रह पाते। वे जुगाड़ जमा कर ऊपर नीचे चिपक जाती हैं कि जीभधारक अपनी जीभ को घटनास्‍थल के दौरे पर व्‍यस्‍त पाता है।
अब चूसने और चाटने में जो बारीक भेद हैउसका ज्ञान सबको सरलता से नहीं होता। आम आदमी तो चूसने और चाटने को एक प्रक्रिया ही समझ कर गलतफहमी का शिकार हो जाता है और उसे निचोड़ भी दिया जाता है। आम को चूसा जाता है इसलिए नेताओं के लिए अवाम आम ही है जिसे चूसना उनका अधिकार है। चूसने और चाटने में भेद करना वैसे तो असीम ज्ञान की दरकार नहीं रखता है लेकिन अज्ञानी इसे एक ही समझ बैठने की खुशफहमी पाल बैठता है। निचोड़ना प्रत्‍येक के बस का नहीं है। पता लगा कि निचोड़ने गए और जब वापिस लौटे तो खुद ही चुसा हुआ आम या गन्‍ना बन इंतकाल फरमा गए।
चाटने वाले दिमाग चाटते हैंउसे चूसना संभव नहीं है और तो और माहिर से माहिर व्‍यंग्‍यकार भी दिमाग को चूस नहीं पाते हैं। वे दिमाग को चाटें नहीं तो उनके लिए व्‍यंग्‍य लिखना पॉसीबल नहीं है। न दिमाग और न चाट को लेमनचूस माना गया है। इनके चूसने का भेद पाने के लिए चाटने की अनिवार्यता मानी गई है। इसमें भावनाओं के साथ शब्‍दों को इस कारीगरी के साथ निचोड़ा जाता है कि जोड़ जोड़ लहक जाता है।
चाटने का एक गुण चटाई में भी पूरी शिद्दत से मौजूद रहता है। चटाई जब जमीन पर या मिट्टी मेंघास में या धूल में बिछाई जाती है तो काफी धूल धूसरित होकर अपने चटाई धर्म को साकार करती है। चटाई का यह कार्य जनहित में स्‍थान पाता है। खुद गंदे होकर भी उसका उपयोग करने वाले की गंदगी और धूल मिट्टी से बचाव करना चटाई का विशेष गुण है। लेकिन चटाई की बिछाई सलीके से की जानी चाहिए। अगर वह सलीके से न बिछी हो तो चित्‍त को चटकाने की ताकत रखती है। चटाई यूं तो चटकती नहीं है परंतु बेढंगी बिछी हो तो कितनों को ही चटका देती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आपकी क्रियाए-प्रतिक्रियाएं न मिलें परंतु न मालूम कैसे शब्‍द पुष्टिकरण word verification सक्रिय रह गया। दोष मेरा है लेकिन अब शब्‍द पुष्टिकरण को निष्क्रिय कर दिया है। टिप्‍पणी में सच और बेबाक कहने के लिए सबका सदैव स्‍वागत है।