खूनी घास का बिजनेस : डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट के चकल्‍लस स्‍तंभ में 21 अप्रैल 2012 के अंक में प्रकाशित


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बोली घास की नहीं बापू के खून की हुई है। खरीदने वाले गधे थोड़े ही हैं जो घास के लालच में इतने नोट खर्च कर देंगे। उस घास में बापू का खून है, खून लाल ही रहा होगा लेकिन इतना लाल भी नहीं कि बापू के असर से घास का रंग बदल कर लाल हो गया हो और खरीदने वाले लाल रंग की घास उपजाने के लिए बोली लगा बैठे हैं। तब खून करने की कीमत थी, आज खूनी घास की कीमत है। खूनी घास कहने से घास को हत्‍यारा मत समझ लीजिए। हत्‍यारे तो वह भी नहीं हैं जिन्‍होंने बोली लगाई है। वह घास को बोली लगाकर इसलिए खरीद रहे हैं ताकि भावनाओं से खिलंदड़पना करने का जालिम अहसास किया जा सके। आप इसे प्‍यार की पुंगी बजाना समझ सकते हैं जबकि यह भावनाओं की पुंगी बजाई जा रही है।
घास चिल्‍ला चिल्‍लाकर यही कह रही है लेकिन कोई गधा नहीं सुन रहा है, वैसे भी जब गधा घास खा रहा होता है तो उसे घास खाने के सिवाय कुछ और नहीं सूझता है। फिर वह न तो दुलत्‍ती मारने की ओर ध्‍यान लगाता है और न ढेंचू ढेंचू का रियाज करता है। सब घास खाने में तल्‍लीन हैं। गधे का स्‍वभाव है कि जो मिल जाएखाए जाओ और घास हरी हो या लाल। लाल चाहे बापू का खून हो लेकिन गधा भी तो धोबी का लाल है। लाल वही जो कमाई करके देगधा खूब लाद कर ले जाता है और कमाई होती है। कमाई को लादने की जरूरत नहीं होती क्‍योंकि वह तो धोबी की जेब में समा जाती है। धोबी गधे पर लादे कपड़ों की भरपूर धुलाई करता हैउन्‍हें चमकदार बनाता है लेकिन गधे को एक दिन भी नहीं नहलाता। कहता है कि वह तो कपड़ों को भी कूट पीट कर चमकाता है। अगर गधे को चमकदार बनाने की कोशिश की और वो कुछ ज्‍यादा ही चमक कर किसी चिकनी चमेली गधी के इश्‍क में पड़ गया तो उसकी तो कमाई धरी रह जाएगी। गधा गधी से रोमांस करता रहेगा और धोबी कपड़ों का गट्ठर ढोता और धोता रहेगा।  नतीजा उसकी कमाई को बिना गधे के मारे ही जोरदार दुलत्‍ती लग जाएगी। यह प्‍यार की पुंगी बजना-बजाना नहीं है। प्‍यार की सभी पुंगियां आजकल बाबा बजा रहे हैंनीलामी में बापू का खून हड़पने वाले बजा रहे हैं। फिर व्‍यंग्‍यकार और अखबार वाले इस दौड़ से बाहर क्‍यों रह जाएं।
गधे की इस दुलत्‍ती से बचने के लिए धोबी का तर्क मौजूं लगता है लेकिन चिकना बनाने के चक्‍कर में ज्‍यादा कूट पीट दिया या निचोड़ पटक दिया तो उसके खून से भी घास लाल हो जाएगी। इससे भी बचने के लिए वह गधे को नहलाने से बचता रहा है। फिर उस लाल घास को कोई नहीं खरीदना चाहेगा, गधे के खून की वैसे भी कोई कीमत नहीं है, उसे तो आप अवाम ही समझ लीजिए। गर्दभराज नहाएं या बिना नहाए मस्‍त रहेंकमाई तो उतनी ही होगी। दुलत्‍ती भी उतनी ही मारेगा और ढेंचू ढेंचू से भी कोई सुर नहीं सधेगा। जितना समय गधे को नहलाने में बरबाद होगा, उतने में तो और पचास जोड़ी कपड़ों को धोबी महाराज धो पटक लेगा और अपनी कमाई में खूब इजाफा करेगा।
मामला बापू के खून से सनी घास की नीलामी का है और मैं भटक या अटक गया हूं धोबी और गधे के करतबों पर यानी धोबी-गधे से होने वाली कमाई। कमाई की महत्‍ता सर्वोपरि है, उसी से जीवन चलता है इसलिए विशेषज्ञ नोटों का जंगल बनाते रहते हैं। कमाई का मामला हो तो भटकना स्‍वाभाविक है। चाहे बाबा की किरपा का मामला हो या खूनी घास की नीलामी का, असल मामला नोटों की चाहत का है। नोट में लोटने के लिए बाबा बनना और अब खूनी घास बेचना सबसे अच्‍छा बिजनेस है। चाहे कोई बाबा कहे या गधा कहे,गधा मिट्टी में लोटेगा और बाबा नोटों मेंधोबी घाट पर लेकिन घाट के पत्‍थर पर लोटना किसकी अंतिम परिणति है, आप परिचित हैं। पत्‍थर की प्रकृति सख्‍त होना है। वह मुलायम नहीं हो सकताउससे भगवान बना दो या इंसान की मूर्ति लेकिन सख्‍ती उसमें मौजूद रहेगी। वही सख्‍ती की माया हाथियों की मूर्तियों में से गायब होने की भनक पाकरमाया की हनक के रूप में वापिस लौट आई है। यह किसने कहा है कि जो हार जाता हैवह हनक नहीं सकता। हारने के बाद हनक बढ़ने के मूल में अब निगाहें केन्‍द्र पर जमना हैं। आओ सब मिलकर इसे सत्‍तरवें आसमान पर तलाशने चलते हैं, आप भी मेरे साथ चल रहे हैं क्‍या ?

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